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कई दिनों से सुन रहे थे कि फैसला आने वाला है। प्रशासन आम आदमी की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित था। उसने संभावित खतरे को भांपते हुए अपनी ओर से सुरक्षा के पुखता इंतजाम करने के लिए दिन-रात एक कर रखा था। स्कूल अगले दो-तीन दिनों के बंद करवा दिए थे। आम आदमी इस बात से परेशान था कि अगर फैसला आने के बाद दंगा हो गया, तो खाने-पीने की चीजों का क्या होगा, वह अपने स्तर से अपने लिए सामान एकत्र कर रहा था। घर-घर में अपनी पहुंच रखने वाले न्यूज चैनल्स फैसले को लेकर बेहद उत्साहित थे, जो लगातार विद्वानों व समझदार लोगों की बातचीत हर आदमी तक पहुंचा रहे थे, वह समझा रहे थे, कैसे यह सब कुछ हुआ और आगे क्या हो सकता है। और इस बीच एक ब्रेकिंग न्यूज आई कि फैसला टल गया। अचानक सब कुछ जैसे सामान्य हो गया, पर आखिर कितने दिनों तक, क्योंकि फैसला तो आना ही है, फिर क्या चार दिन बाद या दो दिन पहले। मेरी समझ में नहीं आया, जिस मुद्दे को सुलझाते-सुलझाते कई वर्ष बीत गए, वह आने वाले चार दिनों में कैसे सुलझ सकता है। असल बात तो यह है कि यह वह मुद्दा है, जिसको कोई नहीं सुलझाना चाहता, राजनेताओं की तो एक ही तमन्ना है कि आम आदमी को इस भ्रमजाल में फंसा कर अपना मतलब सीधा करते रहो। जो होना था, वह तो हो ही चुका। समझ नहीं आता कि कोई आगे की क्यों नहीं सोचता। गढ़े मुर्दें उखाड कर सिर्फ तबाही और दुःख के सिवा आज तक किसी को कुछ मिला है क्या? कैसी विडम्बना है कि जिस नाम के सहारे संसार रूपी भवसागर को पार करने की कोशिश करते है, उसी नाम से आज हर आदमी परेशान है आखिर क्यों? ……….. रामरामरामरामराम…..
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