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किस बात का गुरूर है, हमारा क्या है और हमने दुनिया को क्या दिया है, आज तक लेने के सिवा. रात को दिन कर दिया एडीसन ने बल्व बनाकर. जे.एल. ब्लेयर्ड ने दिया टीवी, डीजल इंजन की खोज जे.एफ. डीजल ने की तो हवा में उड़ा गए राइट ब्रादर्स. सब कुछ विदेशी ही तो है. हमारा सिस्टम विदेशी भाषा के बूते चलता है वह भी विदेशियों द्वारा निर्मित इमारतों में. पूर्व शासकों के टाइमपास खेल क्रिकेट में डंका बजा कर खुश है, पर अपने खेल हॉकी की दुर्दशा पर सोचने का समय नहीं है. हमारे खिलाडिय़ों के कोच भी विदेशी हैं, जिनकी निष्ठा अपने देश के लिए ही तो होगी, फिर वह हमको क्यों एक्सपर्ट बनायेगे. हमारे अपने तो कुछ जानते ही नहीं. हमारे गौरवान्वित होने के लिए यह बात जरूर है कि दुनिया को जीरो (आर्य भट्ट) हमने दिया और खुद जीरो हो गए. सोने की चिडिय़ा कहलाने वाला भारतवर्ष आज खुद माटी की चिडिय़ा के काबिल भी नहीं रहा. अपनी कमियों को दूर करने के लिए भी विदेशियों का सहारा लेना पड़ता है. विश्व स्तर पर किसी भी क्षेत्र में बात की जाए तो हम आखिरी पायदानो ही दिखाई देते है. हमारे नेताओं को अपना घर ही असुरक्षित दिखाई देता है. घोटाले, अपराध करने को अपना देश और सिर छिपाने को विदेशी धरती. अरे नहीं, मैंने यह क्या लिख दिया, हमारे पास भी बहुत कुछ है, जो किसी के पास नहीं है. भ्रष्टाचार, अपराध, हिंसा, बलात्कार, घूसखोरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी के साथ सुलगता कश्मीर, चिंघाडता नक्सलवाद, कट्टरपंथी धार्मिक ताकतें, भ्रष्ट नेता. इतना कुछ जिसके पास हो, वह क्यों न इतराए. हाल ही में दिल्ली का दम पूरी दुनिया ने देखा. पर भारत का अपना दम दुनिया कब देखेगी, यह सवाल भविष्य के गर्भ में है. हर बात में विदेशियों की ओर मिन्नत करने से अच्छा है अपने को मजबूत करके गर्व से कहे हमसे अच्छा कौन है?
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