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रावण दहन समारोह के सफलतापूर्वक संपन्न होने से आयोजन कमेटी के मेंबर्स फूले नहीं समा रहे है. चलो पार्टी की जाए, उसमें कटेगें मुर्गे, बहेगी शराब. जिसका जो मन होगा उसी ब्रांड की दारू मिल जाएगी. मंत्री जी खुशी से पागल हुए जा रहे है. उन्होंने चंदे के रूप में मोटी रकम कमेटी को दी थी, वह भी भीड़ देखकर गद्गद है. बुराई पर भाषण भी शानदार रहा, भले ही वह भीड़ के होहल्ले में पूरा न हो सका. अगर कोई बेबस और लाचार था, तो वह गरीब, जो रोज कुआं खोद कर पानी पीता था. अपना पेट काट कर उसने पैसा जमा करके धनुषबाण, गदा और बच्चों के खिलौने खरीद लिए थे. कि मेले वाले दिन इनको बेचकर एक शाम अच्छा खाना खा सकेगे. मेले वाले दिन वह सुबह ही घर से निकल पड़ा था, मेले में अच्छी सी जगह तलाश कर अपना सामान लगा सके, जहां से उसका सामान बिक सके और वह शाम को सुकून से त्यौहार मना सके. पर हाय! उसकी किस्मत ऐसी कहां? अभी उसने अपने माफिक जगह देखकर चादर बिछाकर अपना सामान लगाया ही था, तभी थानेदार साहब आ धमके, अबे साले दिखाई नहीं देता, तुमको भी यही जगह मिली, उठा ले वरना फेंक दूंगा तेरा सामान. अब कोई उस गरीब के दिल से पूछे. जिसकी रात, तो रात दिन भी काला हो गया. अब वह धनुषबाण और गदाओं को लेकर किस रावण का अंत करने जाए. उसने तो अपने आप से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी, अपनी जमा पूंजी से यह सामान खरीद लिया, जिसकी अब अगले साल तक कोई कीमत नही. सभी खुश थे, चलो आज हमने रावण को भी जला दिया, पर वह गरीब भी दिलदिल ही में जल रहा था. ऐसे मेलों का क्या औचित्य जो हमारी खुशियों को जलाकर राख कर जाते है. असली रावण दहन उस दिन होगा, जिस दिन हम इस गरीब की खुशियों को बचाने में सफल हो जाएगे.
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