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मां, सृष्टि की सबसे अनमोल व सर्वश्रेष्ठ कृति. जो हर पल हैरान व सहमी होती है. कितने गणितज्ञ व शोधकर्ता आए और गए पर एक मां के जज्बात व उसके दिल में उठने वाली तरंगों को न समझ पाए. सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा माने गए है, पर उनका दर्जा मां से ऊंचा नहीं हो सकता. वह मां जो अपने बच्चे को लेकर हर पल सहमी रहती है, बच्चा जरा खांसा तो मां की नींद हराम, जरा सा रोया तो मां बेहाल. और अपने बच्चे की हर शरारत पर मां हैरान होती है. अपने बच्चों के हावभाव के सहारे ही मां पूरी जिंदगी जी लेती है. अपने बच्चे के लिए उसके दिल में अनगिनत अरमान होते है. वह मां जो पूरी जिंदगी अपने घरपरिवार व अपने पति पर ही निर्भर रहती है, अपने बच्चे को हमेशा कुछ न कुछ देने की फिराक में रहती है, ताकि बच्चे के दिल में कोई अरमान अधूरा न रह जाए. अपनी जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर सूनी आंखों देखते हुए बच्चों की खुशी या गम के आंसुओं से अपना पेट भरती है मां. तब भी वह हैरान होती है. उसने तो ऐसा नहीं सोचा था. तेजी बदलते सामाजिक मूल्योंव रिश्तेनातों के बाजारीकरण के बीच मां अन मोल हो जाती है यानि उसका कोई मोल नहीं. हां कुछ अपवाद है, यह अलग बात है. कभी कभी सोच कर रूह कांप जाती है, कितने पत्थर दिल होते है, वो लोग जो अपने दिल से मां को बाहर निकाल फेंक देते है. सोचिए मां ने वर्षों पहले इस बात को सोचा होता, तो क्या आज वह ऐसा करने लायक भी होते है. क्योंकि उनको दुनिया में लाने का फैसला उस नारी ने लिया था, जो मां कहलाने को बेताब थी और मां बनकर उसने वह सब कुछ किया, जिसके लिए उसके दिमाग ने गवाही न दी हो, लेकिन दिल ने उसका साथ दिया था और वहीं मां लाचार बेबस निगाहों से अपने गुजरे वक्त पर जरूर रोती होगी, उसने सब कुछ लूटा दिया, क्यों?
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