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मेरी पहली कविता

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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प्रतियोगिताओं के मेले में
दौर चल रहा कविताओं का
कवियों की देखों अभिलाषा
चांद-सितारों को छूने की आशा
ऐसा मौका निकल न जाए
सोच यह घबरा जाते
पहन पोशाक नेताओं की
शोभा बढ़ाते मंच की
वे पहन कुर्ता पजामा
बेच रहे भविष्य हमारा
ये पहन पोशाक उनकी
करने आए अंकों का सौदा
हो गए बोर सभी
सुन कविता का रूप ऐसा
न कविताओं में कविता
न कवियों में कवि
फिर भी सुन रहे
समय बिताने को ही सही

मेरी सबसे पहली कविता, जो मुझको हमेशा याद रहती है. जिसको मैंने अपनी कॉलेज लाइफ में कॉलेज के वार्षिकोत्सव में कवि सम्मेलन के लिए लिखा था. उस समय इस कविता को लिखना मेरी मजबूरी हो गई थी, क्योंकि मेरे न लिखने पर मेरे दोस्तों के नाराज होने का डर था. क्योंकि उनको गलत फहमी हो गई थी कि मुझको लिखना आता है. उनकी जिद की वजह से मुझको इस कविता को लिखना पड़ा. आखिर इस कविता को सम्मेलन में दूसरा पुरस्कार मिला था. तब मुझको अहसास हुआ था कि कभी-कभी गलत फहमी सही फहमी हो जाया करती है. मेरी सोच कहती है कि मन में उत्पन्न विचारों को शब्दों का आकार दिया जाए तो सकारात्मक परिणाम आने की संभावना बहुत ज्यादा होती है.

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