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आखिर हम कब सुधरेंगे?

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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आखिर हम कब सुधरेंगे, कब तक आरोप-प्रत्यारोपों के भंवर में फंसे रहेंगे, कब हम अपनी जिम्मेदारियों को उठाना शुरू करेंगे. यह कुछ सवाल है, जो हमेशा मन में चुभन पैदा करते है. आखिर मेरी भी समझ में नहीं आता है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्ति खुद को खुदा क्यों समझने लगते है? आखिर वह भी हमारे बीच से ही गए है, फिर जनमत से उन्हें बिखरी व्यवस्थाओं का सुचारू रूप से संचालन करने के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई है. फिर अचानक ऐसा क्यों हो जाता है कि वह अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ते हुए लापरवाह हो जाते है उनकी ओर से जिन्होंने बहुत उम्मीदों से उनको जिम्मेदारी सौंपी थी. किसी भी स्तर पर देख लीजिए. आज लगभग हर जगह जिम्मेदार, पर लापरवाह मिल जाएंगे. हमारे नेताओं की बात ही छोडिए, हम गलती को स्वीकार करते हुए सुधारने की बात भी नहीं करते है और सीधे दूसरे पर आरोप जड़ देते है. अगर आपको आरोप-प्रत्यारोप में इतनी ही रूचि है तो क्यों जिम्मेदारी लेते है. क्यों नहीं दूसरे योग्य व्यक्ति के लिए जगह को रिक्त कर देते. पर ऐसा नहीं होता है, क्योंकि उनके मन में हमेशा यह डर समाया रहता है कि अगर मैंने इस काम को छोड़ दिया तो फिर पेट भरने और ऐश करने के लिए दूसरा काम कहां पर मिलेगा, हमारे देश में इतनी बेरोजगारी है कि यहां पर जब एक बार काम मिलना बहुत मुश्किल है तो दूसरी बार की बात सोचना ही बेमानी है. यही हमारे नेताओं अधिकारियों का हाल है कि अगर वह ईमानदारी से अपने काम को नहीं कर सकते तो क्यों नहीं अपने पदों से त्यागपत्र दे देते. यह कहां का उसूल है कि काम भी नहीं करना और काम को छोडऩा भी नहीं. दूसरा यहां का आम आदमी जो अपने भगवान का इतना बड़ा अंधभक्त है कि उसको अपने भगवान में कोई कमी ही नहीं दिखाई देती, बस आंख-कान बंद करे हुए अपने भगवान भक्त बने हुए है. इससे बड़ा दुर्भाग्य इस देश में क्या होगा कि हमारे प्रधानमंत्री यह कह रहे है ‘मैं मजबूर हूं अरे यह कैसी मजबूरी है. भारत जैसे देश के प्रधानमंत्री के मुंह से जब यह शब्द निकले होंगे तब विश्व समुदाय में इस बात का क्या असर हुआ होगा, सोचा भी नहीं जा सकता. इतने बड़े राष्ट्र के प्रधानमंत्री कह रहे है कि मैं मजबूर हूं. जिस देश में प्रधानमंत्री मजबूर है, उस देश के नागरिकों का क्या हाल होगा. इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है. कब तक हम अपनी जिम्मेदारी से भागते रहेंगे, आखिर कब जिम्मेदारियों का मुकाबला करने के लिए मजबूती से खड़े होंगे. माना एक बार गलत निर्णय हो सकता है, पर बार-बार आपका निर्णय गलत नहीं हो सकता. अगर ऐसा हो रहा है तो दूसरे में नहीं खुद में कमी है. मुझे तो यहां पर एक ही बात समझ आती है कि जब इतनी कूव्वत नहीं है कि जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन कर सको तो खुद जिम्मेदारी को छोड़ चाहिए, ताकि कोई और मजबूत इरादों वाला डट कर समस्याओं का सामना कर सके. वैसे भी यह हिन्दुस्तान है यहां पर प्रतिभाओं की कभी भी किसी भी समय में कमी नहीं रही है, बस उनको सिर्फ एक मौका चाहिए, यह भी सही बात है कि जब कभी भी इन प्रतिभाओं को मौका मिला है, इन्होंने अपनी योग्यता और हुनर के सहारे आसमां की बुलंदियों को छू कर विश्व को आश्चर्यचकित किया है. आज जरूरत इस बात है कि हम सिर्फ एक बार अपने नेता का बगैर किसी लालच के चुनाव करें, तभी हमारी भ्रष्टाचार मुक्त समाज की कल्पना साकार हो सकती है. क्योंकि जब किसी नेता को पूरी ईमानदारी से चुना जाएगा तो ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन करना उस नेता की मजबूरी होगा, फिर वह मजबूर नहीं, मजबूत होगा.

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