Harish Bhatt
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उलझता इतिहास
अंधकारमय भविष्य
बदतर आर्थिक व्यवस्था
लचर शिक्षा प्रणाली
भटकता नेतृत्व
न जाने
किसने रचा यह चक्रव्यूह
और
इसमें फंस गया आम आदमी
रात के स्याह अंधेरे में
राह दिखती नहीं
जगने से पहले से ही
सो जाती हैं उम्मीदें
इस चक्रव्यूह को तोड़ने की
जितनी करता कोशिश
उतना टूट जाता आम आदमी
जिन पर है विशवास
वह दगा कर रहे
दुनिया आगे जा रही
हम पीछे ही टहल रहे
समझ नहीं आता
किसको दे दोष
जो बोया था कभी हमने
आज वही लहलहा रहा
आंखों के सामने
आओ करो वादा
सुधारना है भविष्य
बचाना है इतिहास
तो बनना होगा अर्जुन
तभी टूटेगा चक्रव्यूह
घर हमारा है
हमको ही बचाना है
गैरों पर न करो विश्वास
खुद से करो शुरुआत.
इसलिए
सोचो, समझो और फिर करो
ईमानदारी से मतदान.
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