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मां बस मां होती है

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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मां तो बस मां होती है, एक मां के मनोभावों को शब्‍दों में पिरोना सबसे मुश्किल होता है. यही बात है कि मैं चाहते हुए भी मां के प्‍यारे से अहसास को शब्‍दों का आकार नहीं दे पा रहा हूं. मां की अहमियत का अंदाजा एक छोटी सी बात से ही लग सकता है कि हमारा होना या न होना सिर्फ और सिर्फ मां की इच्‍छा पर ही निर्भर है. उसने चाहा तो हम आज जिंदगी जी रहे है. जिसने हमको जीवन दिया, वह आज भी बेबस निगाहों से हमारी ओर ताकते हुए कामना करती रहती है कि मेरे बच्‍चे कामयाबी की बुलंदियों को छूए. लेकिन दुर्भाग्‍य कहो या समय का फेर या फिर पेट पालने की मजबूरी कि आज चाहते हुए भी बच्‍चे अपनी मां के पास नहीं रह पाते. रोजगार की तलाश में सुदूर स्‍थानों की ओर निकले बच्‍चे रोजगार में इतने व्‍यस्‍त हो जाते है कि समयाभाव के कारण अपने घर नहीं पहुंच पाते. बस दो रोटी कमाने और इच्‍छाओं पर अंकुश न लगा पाने के कारण वह धीरे-धीरे अपने घर परिवार से दूर हो चले जाते है कि वक्‍त पर अपनी मां के पास आने के लिए भी उनको अवकाश नहीं मिल पाता. और मां रोते रोते इस दुनिया से रूखसत हो जाती है. यहां पर पिता की बात इसलिए नहीं कह रहा हूं कि जीवनचक्र में आमतौर पर पिता पहले ही दुनिया से रूखसत हो चुके होते है. तब ऐसे में मां दो तरफा दबाव को सहन करती है एक तो उसके जीवन साथी का अंत समय में उसके साथ न होना और दूसरा उसके बच्‍चों का पर ध्‍यान न होना. तब भी मां रोते रोते एक ही बात कहती रहती है जियो मेरे लाल. लेकिन शायद ही कोई बच्‍चा कभी यह बोलता होगा कि मत रो मेरी मां तुम जियो हजारों साल. वह तो बस यही सोचता है कितनी जल्‍दी मां को इस दुख से छुटकारा मिले और शांति से रह सके. बस इसलिए ही मां बस मां होती है.

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