Menu
blogid : 2899 postid : 778

दोषी कौन?

Harish Bhatt
Harish Bhatt
  • 329 Posts
  • 1555 Comments

Photoचुनाव के वक्त हर कोई कहता है कि उनको चुनो, क्योंकि वह गरीबों की सरकार बनाएंगे, लेकिन चुनाव जीतते ही अमीरों की सरकार बन जाती है. फिर उसके बाद शुरू होता है वह खेल, जिसमें अमीरों को अमीर और गरीबों को गरीब बनाया जाता है. फिर आता है सरकारी आदेश कि इन खानाबदोशों को भगाओ. लेकिन किसी ने भी यह सोचा कि आखिर यह कहां जाएंगे. अपनी मां के पीछे भागते हुए यह मासूम सा बच्चा क्या सोच रहा होगा. इसकी मां के दिल पर क्या बीत रही होगी. बस सरकार को फरमान जारी करना है, क्‍योंकि यह गरीब अमीरों के हितों के आडे आ रहे थे, रही बात पुलिस की, उसको तो हुकूम बजाना है. पुलिस को उस पर अमल करना है. देश विकास के रास्‍ते पर तेजी से आगे बढ रहा है, अच्‍छी बात है. पर क्‍या यह अच्‍छी बात है कि यह लोग जिन्‍हें खानाबदोश कहा जाता है, के लिए सरकार आज तक स्‍थाई व्‍यवस्‍थाएं नहीं कर पाई. क्‍या भारत के नागरिक नहीं है, अगर यह लोग भारत के नागरिक नहीं है तब क्‍यों इनको एक शहर से दूसरे शहर में भगाया जाता है, क्‍यों नहीं एक ही बार में इनको देश से बाहर भगा दिया जाता. आज भी यह खानाबदोश जातियां तंबू-कनात लिए हुए एक जगह से दूसरी जगह भटकती रहती हैं। भारत सरकार द्वारा गठित खानाबदोश एवं अर्ध खानाबदोश जनजाति राष्ट्रीय आयोग ने जुलाई २००८ के पहले सप्ताह में सौंपी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इस समय देश में करीब 12 करोड़ ऐसी आबादी है। कुछ अन्य स्रोतों से यह संख्या 15 करोड़ बतायी गयी है। इनकी न तो कोई नागरिकता होती है और न ही कोई पहचान। बालकृष्ण रेणके की अध्यक्षता में गठित आयोग ने बंजारों की स्थिति में सुधार के लिए 38 अंतरिम सिफारिशें की और उन्हें आवश्यक नीति एवं योजना निर्माण के लिए सामाजिक न्याय मंत्रालय को सौंपा। लेकिन न तो संसद को और न ही इन बनजारों को ही सरकार की ओर से यह बताया गया है कि उनके हालात में बेहतरी के लिए इन सिफारिशों की रोशनी में क्या कुछ किया जा रहा है। आयोग ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की है कि विभिन्न राज्यों में इन जातियों को दलित-आदिवासी या पिछड़ा- किसी वर्ग में शामिल नहीं किया गया है। बंजारा मुख्य रूप से देश के दक्षिण और पश्चिम में बसे हैं। वैसे ऐसी घूमन्तु जातियां देश भर में हैं। उत्तर प्रदेश में ये बावरिया और बिहार में करोर, नट, बक्खो आदि कहलाते हैं। दक्षिण के बनजारे अपना उत्स उत्तर भारत की ब्राह्मण और राजपूत जातियों से मानते हैं, तो राजस्थान मूल की गड़िया लोहार नामक बनजारा जाति चित्तौड़ की राजपूत जाति से। अंग्रेंजों ने 1871 में अपराधी जनजाति कानून बनाकर सभी बंजारा जातियों को चोर-लूटेरे के रूप में चित्रित किया। यह काला कानून 1952 में रद्द हो गया लेकिन उसकी जगह ‘आदतन अपराधी कानून 1952´ स्वतंत्र भारत की संसद ने बना दिया, जो आज भी लागू है। इसके अलावा भिक्षा प्रथा निषेध कानून के तहत भी इन जातियों को प्रताड़ित करने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1930 में लिखा था, ‘अपराधी जनजाति कानून के विनाशकारी प्रावधान को लेकर मैं चिंतित हूं। यह नागरिक स्वतंत्रता का निषेध करता है। इसकी कार्यप्रणाली पर व्यापक रूप से विचार किया जाना चाहिए और को्शिश की जानी चाहिए कि उसे संविधान से हटाया जाए। किसी भी जनजाति को अपराधी करार नहीं दिया जा सकता।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh