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झूठ बोलना आता नहीं और सच कह नहीं सकता। इसलिए खामोशी को ही स्वीकार कर लिया। बस यूं ही मन बहलाने के लिए कुछ भी बोलता रहता हूं, ताकि मन में बुराइयां जमा न हो जाए। मंजिल अभी बहुत दूर है, इसलिए खामोशी का आवरण ओढे धीरे-धीरे चलता जा रहा हूं, क्योंकि मंजिल पर पहुंचना जरूर है। हां रास्तों में जो फिजूल की बातें कानों से मन तक पहुंचती है, उनको मुंह के रास्ते बाहर फेंकता रहता हूं। एक बात बहुत सुनने को मिलती है। जिसको देखो, वह समय को ही कोसता रहता है। अब समय का क्या दोष। समय तो सबका एक जैसा ही होता है। खुद की नाकामियों के लिए समय को दोषी ठहराने से बेहतर होगा कि अपना आंकलन किया जाए। क्योंकि समय कभी भी खराब नहीं होता। समय कभी रूकता नहीं, वह तो एक समान गति से चलता रहता है। यह व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करता है कि वह समय के साथ चलता है या पीछे छूट जाता है। खुद के निठल्लेपन भी हद होती है। इलेक्शन में ईमानदार प्रत्याशी को वोट देंगे नहीं और पांच साल तक समय को कोसते देते रहेंगे या समय पर काम करने की बजाय मटरगस्ती करने वाले आंकलन या फैसले की घड़ी आने पर बगलें झांकते मिलेंगे। समय हर इंसान को वक्त पर मौका देता है। अब यही तो इंसान को तय करना होता है कि उसको समय के साथ चलना है या नहीं। समय कितना ताकतवर और सक्षम है कि इन छोटी-छोटी बातों से समझा जाता है –
साल की कीमत उस शख्स से पूछिए, जो फेल हुआ हो.
महीने की कीमत उस शख्स से पूछिए, जिसे पिछले महीने तनख्वाह न मिली हो.
हफ्ते की कीमत उससे पूछिए, जो पूरा हफ्ता अस्पताल में रहा हो.
रोटी की कीमत उससे जाने, जो दिन भर से भूखा हो.
घंटे की कीमत उससे पूछे, जिसने किसी का इंतजार किया हो.
मिनट की कीमत उस व्यक्ति से पूछे, जिसने ट्रेन मिस की हो.
सेकेंड की कीमत उससे जाने, जो दुर्घटना से बाल-बाल बचा हो.
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