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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को क्या जरूरत थी, सीता की अग्नि परीक्षा लेने की, वह क्या साबित करना चाहते थे, उसके बाद किसी के कहने भर से राजमहल से निकाल दिया, वह भी उस समय जब वह गर्भवती थी. सीता ने तो पग-पग पर अपने पति का साथ निभाया. फिर राम ने क्यों नहीं सीता का साथ दिया. ऐसा ही तो रामायण और रामचरित मानस में लिखा गया है. और ऐसा लिखा गया कि वही सच हो गया. चलिए भगवान की भक्ति में ग्रंथ की रचना करनी थी, तो नारी को ही क्यों कष्ट झेलते हुए दर्शाया गया. फिर उनमें भी यह लिखने की क्या जरूरत थी
शूद्र, गंवार, ढोल, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी’
इसमें नारी को क्यों जोडा गया. जबकि नारी तो जननी है और जननी को ताडन का अधिकारी कैसे बना दिया. हां शूद्र, गंवार, ढोल व पशु ताडन के अधिकारी हो सकते है. लेकिन नारी. सब कुछ गडबड. बातें ही है जो समाज पर असर करती है, इसलिए कभी भी ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, जिससे समाज में गलत संदेश जाए. लेकिन क्या किया जा सकता है ऐसा तो हो चुका है.
सबसे बडी बात जो दिखता है, वही सच होता है. बच्चा बच्चा जानता है कि राम ने रावण को मारने के बाद सीता की अग्नि परीक्षा ली. यही बातें उस पर असर करती है. क्योंकि वह हर साल रामलीला देखता है या टीवी में रामायण. किसी भी बात को कितना भी घुमा लीजिए, लेकिन जो सच है उसको कितना कोई घुमा सकता है. रहेगा तो सच ही. खुद सोचिए क्या कोई पुरुष अपनी पत्नी को उस समय घर से बाहर निकाल सकता है, जिन परिस्थितियों में सीता को राजमहल त्यागना पडा था.
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