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राजनीति का विरोध करने वाले अन्ना हजारे खुद ही राजनीति का शिकार हो गए. टीम अन्ना के सदस्यों ने किंग बनने के चक्कर में बेचारे अन्ना को किंग मेकर बनने से भी वंचित कर दिया. अपने मकसद में कामयाबी चाहने वाले इंसान की जिंदगी में एक मौका जरूर आता है, भले ही उसका समय निश्चित न हो. ऐसा ही मौका अन्ना हजारे की जिंदगी में भी उस समय आकर चला गया, जब पिछले वर्ष उन्होंने रामलीला मैदान में नेताओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद किया था. भ्रष्टाचार से पीडि़त देशवासी अन्ना की मुहिम में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो गए थे. नतीजन रातोंरात अन्ना भारत जैसे विशाल देश के भगवान नजर आने लगे थे. लेकिन समय ने ऐसी पलटी खाई कि अन्ना का आंदोलन धड़ाम हो गया. वजह साफ थी कि राजनेताओं से लडऩे के लिए राजनीति जरूरी थी और अन्ना राजनीति के खिलाफ थे. दूसरी ओर नेताओं ने राजनीतिक चालों से अन्ना व उनकी टीम को धराशाई कर दिया. जैसे लोहे को लोहा ही काट सकता है, वैसे ही राजनेताओं से लडऩे के लिए राजनीति जरूरी है. लेकिन अफसोस इतनी छोटी सी बात अन्ना हजारे नहीं समझ सके. शह-मात के इस खेल में नेताओं ने टीम अन्ना को बुरी तरह से घेर लिया और ऐसा घेरा कि जहां अन्ना अलग-थलग पड़ गए, वहीं उनकी टीम के सदस्य अन्ना से बगावत करते हुए राजनीति के मैदान में अपनी जगह तलाशने लगे. जिंदगी हर किसी को कामयाब होने का अवसर प्रदान करती है. बस यह इंसान की सोच पर निर्भर करता है कि वह इस मौके का सदुपयोग करते हुए कामयाबी हासिल करता है या अपने निक्कमेपन के चलते गुमनामी के अंधेरों में गुम हो जाता है.
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