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नेताओं का खुद का तो कोई ईमान है नहीं और जनता को ईमानदारी से रहने की सीख देते है. विकास के नाम पर जंगलों को काट-काट कर ईमारते खडी कर दी. नेताओं के कारों के काफिले चलने के लिए सडकों की चौडाई कम पड गई तो अतिक्रमण हटाओ अभियान चलवाकर शहर खाली करवा दिए. जिसके पास गैस सिलेंडर का कनेक्शन है, उसके राशन कार्ड पर कैरोसीन या मिट्रटी का तेल बंद करवा दिया. और तो और साल भर में सिलेंडरों को छह-सात तक सीमित करवा दिया. अब कोई इन नेताओं से पूछे कि खाना कैसे बनाया जाएगा. खुद को वीआईपी दर्शाने के लिए जनता के लिए आम आदमी की उपाधि ईजाद कर दी. जनता भी मारे फूल के कुप्पा हुई जा रही है कि वह भी आम आदमी है.
चिल्लाए फिरते है कि भ्रष्टाचार मुक्त व्यवसथा बनाएंगे. ऐसे चिल्लाने से यदि व्यवस्थाएं बदल जाती तो अब तक भारत का इतिहास और भूगोल ही बदल जाता. यहां चीखने- चिल्लाने से कुछ नहीं होता, बल्कि करने से होता. रोज सुबह- शाम टेलीविजन से चिपके रहते हो, जरा समझना भी होगा, संसद के बाहर चीख-चीख कर किसी बात का विरोध करने वाले ये नेता कैसे सदन में अपनी बात से पलटी मारते हुए चुप हो जाते है.
बहुत ज्यादा नहीं, तो थोडा तो समझने की कोशिश की ही जा सकती है. अगर इस देश में भ्रष्ट नेताओं की कमी नहीं है, तो ईमानदारों की भी कमी नहीं है, बस हम ही उनको नहीं पहचान पाते है. फिर हमको उनको मौका ही कहां देते है. ईमानदारों को मौका देने के लिए कौन सा हमको पहाड खोदना है. बस मतदान वाले दिन अपने बूथ तक जाकर वोटिंग मशीन का एक बटन भर तो दबाना है. बस इसी एक पल में हमारा भविष्य निर्धारित हो जाता है. इस एक पल तक ही जनता भगवान और नेता दास होता है. यह पल गुजरा और आदमी दास और नेता विधाता हो जाता है, और शुरू होता है जनता की धुलाई का काम. नेता जनता की धुलाई करते-करते इतनी सफाई कर देते है कि बेचारी जनता के पास कुछ बचता ही नहीं सिवाए रोने पीटने. न तो जनता सुधरने का नाम ले रही है और न ही नेता, तो भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था कैसे बनेगी. यह हमारा दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि जनता नेता बनाती है और नेता जनता को.
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