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मौजूदा समय में उत्पन्न हरेक समस्या का सिर्फ एक ही समाधान है कि हर हाथ को काम उपलब्ध कराया जाए. जब तक एक भी हाथ खाली रहेगा, तब तक समस्याएं उत्पन्न होती रहेगी. फिर कहा भी जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है. इसलिए जरूरी है कि हर किसी को रोजगार उपलब्ध कराया जाए, रोजगार रहेगा तो पैसा भी आएगा, पैसा आएगा तो खर्चे पूरे होगे. खर्चे पूरे होगे तो मन खुश रहेगा. मन खुश रहेगा तो शैतानियों की ओर दिमाग नहीं जाएगा. अगर सक्षम लोगों को भारत से प्रेम है और वह देशभक्त कहलाने में गर्व महसूस करते है, तो वह हर उस भारतीय के लिए योग्यता के आधार पर रोजगार उपलब्ध कराए, जो रोजगार को लेकर परेशान है. असली देशभक्त वह है जिसने दो व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाया है. इन नेताओं के भरोसे कतई न रहा जाए, क्योंकि इनको कुतर्क करने से फुर्सत मिले तो कुछ अच्छा करने की सोचे. जब यह नेता अपने स्वार्थों को पूरी ईमानदारी से पूरा करते है तो फिर हर इंसान अपना काम क्यों नहीं ईमानदारी से करता. जो खुद को अच्छा लगे और जिस काम करने को योग्यता हो, उसी काम क्यों नहीं किया जाता. अब ऐसा भी नहीं हो सकता कि योग्यता तो है चपरासी बनने और ख्वाब संजो लिए अफसर बनने के. चपरासी बनो या अफसर, ठेली पर सामान बेचिए या कहलाओ बिजनेसमैन, लेकिन कुछ तो करो. इन नेताओं से उम्मीद बिलकुल भी न रखी जाए, अगर यह नेता समाज के कुछ करने लायक होते, तो अब तक कर न दिया होता. उल्टे सीधे बयान देकर जनता को भ्रमित करते है, ताकि यह अपनी मनमर्जी से कुछ भी कर सके. वैसी ही यहां की जनता, किसी नेता ने आवाज लगाई नहीं चल दी उसके पीछे हमारा नेता कैसा हो, हमारा नेता ऐसा हो. अरे जरा, सोचिए तो सही इसने आवाज क्यों लगाई. इस आवाज के पीछे उसका क्या स्वार्थ छिपा है. जरूरत ही क्या है किसी नेता के पीछे भागने की. खामख्वाह में इन नेताओं के भाव बढाते रहते है. इन नेताओं की बात ही क्या अपने खर्चे तो कम करते नहीं, महंगाई का रोना रोते हुए चीजों के दाम बढाते रहते है. यहां किसी गरीब को 50 पैसे की सिरदर्द की गोली के लिए सरकारी हॉस्पिटल में धक्के खाने पडते है, तो उसी गरीब को मिलने वाली मदद को हडप कर नेताजी विदेश में लाखो, करोडो अपनी फिटनेस के नाम पर खर्च देते है. व्यवस्था तो खराब होनी ही है जिसके पास काम है, वह करना नहीं चाहता, और जो काम करना चाहता है, उसके पास काम है नहीं. कुल मिलाकर हालात खराब है और तब तक खराब ही रहेंगे, तब तक हर हाथ को काम नहीं मिल जाता.
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