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कुंभ का पौराणिक महत्व

Harish Bhatt
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पुराणों में कुंभ पर्व की कथा विस्तार से वर्णित है. श्रीमद्भागवत, स्कन्द पुराण तथा अन्य पुराणों में कुंभ का उल्लेख है. राजा बलि से पराजित देवों को भगवान विष्णु ने नीति मार्ग का सहारा लेकर बलवान शत्रु से मेल करने का परामर्श दिया. साथ ही कहा कि तुम राजा बलि को मंथन के लिए सहमत कर लो. समुद्र मंथन से तुम्हें अनेक दिव्य औषधियां एवं रत्न प्राप्त होंगे. जिनमें समय-समय पर मैं तुम्हारी सहायता करता रहूंगा. भगवान विष्णु की आज्ञा को शिरोधार्य कर देवताओं ने राजा बलि को समुंद्र मंथन के लिए सहमत कर लिया. मंदराचल को मथनी तथा वासुकि नाग को डोरी बनाया गया. कच्छप ने आधार बनकर मंदराचल को अपने पृष्ठ भाग पर धारण किया. देवताओं और दानवों ने मिलकर समुंद्र मंथन का प्रारंभ किया. समुंद्र मंथन से विष, कामधेनु, उच्चैःश्रवा अश्व, ऐरावत हाथी, कौस्तुभमणि, पारिजात वृक्ष, रंभा अप्सरा, लक्ष्मी, वारूणी, बालचंद्र, शंख, हरिधनु तथा अमृत कलश धारण किए धन्वन्तरी निकले.
संख्या की दृष्टि से धन्वन्तरी एवं अमृत कलश की गणना अलग-अलग की जाती है. इस प्रकार मंथन से उक्त चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई. अमृत के निकलते ही समुंद्र मंथन बंद हो गया. अमृत पान के लिए देवों और दानवों में परस्पर छीना-छपटी होने लगी. देव गुरु बृहस्पति के संकेत पर इंद्रपुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भागा. दानव भी अपने गुरु शुक्राचार्य से आज्ञा पाकर अमृत कलश को हस्तगत करने के लिए जयंत के पीछे-पीछे भागे. बारह दिनों तक अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए संघर्ष चलता रहा. इस अवधि में प्रतिदिन अमृत कलश को सुरक्षा की दृष्टि से अलग-अलग स्थानों में रखा जाता रहा. इनमें आठ स्थान स्वर्ग और चार स्थान भूमंडल में स्थित है. जिन स्थानों में भूमंडल पर कलश सुरक्षा की दृष्टि से रखा गया. वे स्थान है – हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक. इन्हीं चारों स्थानों पर अमृत पूरित कुंभ को रखने-उठाने से अमृत की बूंदे छलकी, जिसके कारण इन स्थानों पर प्रति बारहवें वर्ष कुंभ महापर्व का आयोजन होता है.
प्रति बारहवें वर्ष कुंभ आयोजन में पौराणिक परम्परा के अनुसार देवताओं का एक दिन एक वर्ष के बराबर होता है. इस प्रकार बारह दिन बारह वर्ष के बराबर होते है.
कुंभ के विशेष स्नान पर्व

मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा, श्री महाशिवरात्रि सोमवती अमावस्या, नवसंवतारम्भ, श्रीरामनवमी, चैत्र पूर्णिमा, मेष संक्रांति, वैशाख अधिमास, पूर्णिमा स्नान

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