Harish Bhatt
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मेरे दिलो-दिमाग पर
छाया है
तेरे प्यार का खौफ
अपनी भी थी
नीयत नेक और इरादे बुलंद
पर क्या करूं
समझ नहीं पाता हूं
गहरा गया है इस कदर
तेरे प्यार का खौफ
न दिन में चैन
न रात को आराम
भूल चुका हूं
अपना लक्ष्य और कर्म
अब याद आता नहीं
क्या कहा था मां ने
पिता को सहारा देने की
सोचते-सोचते
डूब गया
तेरे प्यार के गहरे सागर में
न समाज का डर
न अपनों की चिंता
जानता हूं कि
तुम ही कर सकते हो ऐसा
तुमने ही बांधा था
अपने मोहपाश में
मुझमें नहीं इतनी शक्ति
छुडा सकूं खुद को इस पाश से
अब तो बस एक ही ख्वाहिश
समा लो मुझे अपने में या
दे दो मुझे मुक्ति.
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