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सोचा किसी अपने से बात करें;
अपने किसी ख़ास को याद करें;
किया जो फैसला होली की बधाई कहने का;
तो दिल ने कहा क्यों ना आपसे शुरुआत करें।
होली की हार्दिक बधाई
पिछले कई दिनों से शोले फिल्म का गब्बर सिंह का कहा गया एक डॉयलॉग रह-रह कर सुनाई दे रहा है कि होली कब है, होली कब है. मीडिया के फील्ड में काम की उलझनों के बीच याद ही नहीं रहता कि होली कब है, इसलिए हर कोई एक-दूसरे से बार-बार पूछता रहता है कि होली कब है. क्योंकि इस दिन अवकाश मिलने वाला है. इस दिन न तो कोई रामगढ लूटने जाना है और न ही होली खेलनी है. पर हां इतना जरूर है कि होली पर दुश्मनों से प्यार से गले मिलकर गिले-शिकवों को दूर करने का प्रयास जरूर करते है. यह अलग बात है कि वह दूर होते है या यूं ही बने रहेंगे. कई सालों से दिल में गहरी पैठ बनाए गिले-शिकवे मिलावटी सामग्री से तो बने नहीं है कि रंगों की बाढ़ उन्हें अपने साथ बहा ले जाती. उनको तो हमने वर्षों सींचा है और फिर जब से होश संभाला तब से अपने कैरियर से ज्यादा ध्यान हमने अपने गिले-शिकवों को दिया है ताकि वह इतने मजबूत हो जाए कि कोई उनको हिला न सके. इस होली पर कुछेक के गले भी मिलेंगे, भले ही वह हमको पहचाने या न पहचाने. कबीर दास कह गए थे ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में प्रलय होएगी, बहुरी करोगे कब. इस बात पर अमल करे भी कैसे. इसके लिए समय भी तो मिलना चाहिए. समय मिले तब किसी से मिलने का विचार बनाया जाए, शुक्र है कि इस मारामारी के दौर में एक दिन का अवकाश मिल जाए यह बहुत राहत देने वाला होता है. इसलिए होली की याद आती है. मेरा दिल कह रहा है कि इस होली पर नाराज हो चुके परिचितों को मिलकर अपने गिले शिकवे दूर किए जाए, लेकिन दिमाग कह रहा है कि अब क्यों दुश्मनों को गले लगा रहो हो, क्यों फालतू में अपने गिले-शिकवों के बेघर करने में लगे हो, जब इतने सालों से तुमने उनको अपने दिल से नहीं निकाला तो फिर अब क्यों? खैर कोई बात नहीं, प्रयास तो किया ही जाएगा, सफल रहा तो अच्छा, नहीं तो फिर तो अगली होली का इंतजार.
एक बार पुनः
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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