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बाजारवाद के दौर में हर चीज बिकाऊ है. बस बेचने की कला आनी चाहिए. चीजों की बात छोडि़ए, अब इंसान भी बिक जाते है, बस शर्त एक ही है कि वह खरीददार की कसौटी पर खरा उतरने की. राष्टï्रीय व बहुराष्टï्रीय कंपनियां युवाओं के लिए बेहतरीन सेलरी पैकेज के साथ हमेशा अपने दरवाजे खुले रखती है. फिर भी अगर किसी को नौकरी न मिले तो यह कंपनी का नहीं, नौकरी पाने वाले युवा का दुर्भाग्य है कि वह खुद को नौकरी के काबिल नहीं बना पाया. आप खुद को मार्केट में किस तरह से प्रजेंट करते है, यह खुद पर निर्भर करता है. योग्यता के साथ-साथ यदि प्रजेंट करने की कला भी आ जाएं तो अच्छी सेलरी या ऊंचे दाम मिलना तय है. कई बार योग्य होने के बावजूद इंटरव्यू में फेल हो जाना इस बात को बताता है कि आपने योग्यता तो हासिल की, लेकिन उसको प्रजेंट करने का तरीका नहीं सीखा. कभी-कभी इसका उलटा भी हो जाता है कि जिस तरह से खरीददार को बेवकूफ बनाते हुए सड़ी-गली चीजों को खूबसूरत पैकिंग में रखकर बेच दिया जाता है, ठीक वैसे ही कम योग्यता वाले बेहतरीन प्रजेंटेशन के साथ अपने नियोक्ता को प्रभावित करके नौकरी हासिल कर लेते है. लेकिन यह धोखा होगा, अपने और अपने नियोक्ता के साथ. बाजारवाद की सबसे अच्छी यह बात है कि जिस इंसान को जितनी सेलरी या कीमत चाहिए, वह उसको मिल जाएगी, पर इसको हासिल करने के लिए खुद को उतनी कीमत के लायक बनाना होगा. एक चपरासी की योग्यता रखने वाले को प्रबंधक के स्तर की सेलरी नहीं मिल सकती. यदि प्रबंधक के स्तर की सेलरी की तमन्ना हो तो उसके स्तर की योग्यता भी हासिल करने के मेहनत करनी चाहिए. सिर्फ ख्वाब देखने भर से पूरे नहीं होते, बल्कि उनको पूरा करने के लिए ईमानदारी से मेहनत भी करनी होती है.
नेपोलियन बोनापार्ट के शब्दकोष में असंभव नामक शब्द नहीं था. अपने कॅरियर के संदर्भ में भी यह मान लें कि मुश्किल नहीं है कुछ भी, अगर ठान लीजिए. मंजिल जरूर मिलती है, बस रास्तों पर चलने की लगन होनी चाहिए.
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