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तो गांधी टोपी में क्‍या बुराई है्

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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कुमार वि‍श्‍वास कहते है कि नरेंद्र मोदी में दम है, तो अमेठी में चुनाव लडे

क्‍या कुमार वि‍श्‍वास यह कहने का दम रखते है कि राहुल गांधी गुजरात जाकर चुनाव लडेृ.

सब कुछ समझ आ जाता है सत्‍ता हासि‍ल करने और न्‍यूज की हेड लाइन बनने के लि‍ए बडे नामों का सहारा लेना कोई नई बात नहीं हैृ. कांग्रेस की नाकामी और बीजेपी की आपसी कलह के बीच आम आदमी पार्टी ने दि‍ल्‍ली में सरकार बनाने में सफलता क्‍या हासिल कर ली, उसके तो तेवर ही बदल गए, समय कभी भी एक जैसा नहीं रहता, व्‍यवस्‍था भी कोई चीज होती है, हर आदमी मुख्‍यमंत्री बन जाएगा, तो मुख्‍यमंत्री की अहि‍मयत क्‍या रह जाएगी, फिर वही बेकार की बाते, आप सरकार है, जनता नहीं, हेल्‍प लाइन नंबर की बात सही है, लेकि‍न हर आदमी स्‍टिंग आपरेशन करने लगेगा, तो क्‍या अराजकता को बढावा नहीं मि‍लेगा, आप को सब मालूम है, कहां भ्रष्‍ट अफसर है, कहां भ्रष्‍टाचार सबसे ज्‍यादा है, कुछ दि‍न पहले तक आप ने सबका बहि‍खाता खोल रखा था, अब आप के पास सत्‍ता भी है, अधि‍कार भी है, आप कार्रवाई करि‍ए न, जनता को बेवकूफ बनाने से क्‍या फायदा, आप थोडा ध्‍यान भी रखि‍ए, दि‍ल्‍ली को सुधारि‍ए, अपने सि‍पहसलारों को संभालि‍ए, आप जि‍म्‍मेदार है आप की जवाबदेगी बनती है, यह अच्‍छी बात है कि आप के साथ अच्‍छे लोग खुद ब खुद आकर जुड रहे है, लेकि‍न वह भी हाई लेबल पर , मैं हूं आम आदमी लि‍खी टोपि‍यां फैशन का हि‍स्‍सा बनती जा रही है, अगर टोपि‍यां पहनने से सब कुछ बदला जा सकता है, तो गांधी टोपी में क्‍या बुराई है्.

दिल्ली में कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाकर आम आदमी पार्टी की महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई है. वह अभी दिल्ली पर फोकस रखे तो ज्यादा अच्छा होगा. लोकसभा की सभी सीटों पर चुनाव लडऩे के चक्कर में कहीं ऐसा न जाएं कि दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम. वैसे भी आम आदमी पार्टी की कोई खास उपलब्धि नहीं है. वह तो दिल्ली के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का ही दम है, जिसने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के नायक के तौर पर पेश किया और फिर दिल्ली अत्यंत चालाक व चतुर जनता, जिसके कहने ही क्या. कांग्रेस व भाजपा को सबक सिखाने के चक्कर यह भी भूल गए कि जिस शख्स ने अन्ना हजारे से बगावत कर दी, क्या वक्त आने वह जनादेश के खिलाफ नहीं जा सकता. सीधी सी बात है उसूलों और नियम कानूनों को मानने वाला व्यक्ति किसी भी स्तर पर समझौता नहीं करता. चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हो. समझौता वाली प्रवृत्ति कब घातक रूप अख्तियार कर ले, कहा नहीं जा सकता. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस के खिलाफ ही चुनाव लड़ा और उसके ही सहयोग से सरकार बना ली, तब ऐसे में क्या भरोसा कि वह आम जनता के साथ ईमानदार रहेगी. सिर्फ आम आदमी जैसा दिखने और नाम रखने से जनता का भला हो जाएं तो एक चाय बेचने वाले में क्या कमी है. कहा जा रहा है कि एक चाय बेचने वाला देश को क्या चलाएगा. गरीबी में पले-बढ़े बच्चे अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए पढ़ाई से इतर कुछ भी धंधा करते है, तो क्या बुरा करते है, कम से कम चोरी-चकारी तो नहीं करते. जिस देश में जेल में बंद शख्स चुनाव लड़कर मंत्री बन सकते है, वहां पर इस तरह की बातें करना अच्छी बात नहीं है. दूसरी ओर प्रधानमंत्री कहते है कि नरेंद्र मोदी अगर पीएम बनते है, तो देश तबाह हो जाएगा. इस बात का क्या मतलब है. आप अपनी कमजोरियां छिपाने के लिए दूसरों पर दोषारोपण कैसे सकते है.

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