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देशवासियों को सपने दिखाकर अपना सपना पूरा करने वाले नरेंद्र मोदी अगर यूं ही चुप्पी साधे रहे तो वह दिन दूर नहीं जब उनमें और उनके पूर्ववर्तियों में कोई अंतर नहीं रहेगा. माना प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए कुछ कायदे-कानून होगे. लेकिन नरेंद्र मोदी के जिस अंदाज और जज्बे को लेकर जनता ने उन्हें पूर्ण बहुमत दिया, वह जनता आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उसी अंदाज में कार्य करने की अपेक्षा करती है. मीटिंग मीटिंग के चक्कर में न जाने कब किस की सेटिंग हो जाए, यह सोच कर डर लगता है. इसलिए मीटिंगों के दौर से बाहर निकल कर धरातल पर काम करने की जरूरत है. शेर दहाड़ता हुआ ही अच्छा लगता है. वरना मांद तो कोई भी सो सकता है. चुनाव के दौरान एक चैनल पर बलात्कार के मुददे पर नरेंद्र मोदी की बेचैनी व कुछ कर गुजरने की जो ललक दिखाई दी थी, आज वह सिरे से गायब दिखती है. दूसरी ओर आए दिन पड़ोसी द्वारा सीज फायर के उल्लंघन के दौरान जवानों की मौत की खबर भी मन को विचलित कर देती है. आपसी भाई-चारा अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह. दोनों की अपनी अहमियत है. जब दोस्ती दोस्तों की तरह निभाई तो दुश्मनी को दुश्मनों की तरह निभाने में क्या परहेज. अच्छे दिनों के लिए जनता ने महंगाई की कड़वी गोली को तो किसी तरह हजम कर लिया, पर आए दिन बेटियां हैवानियत की शिकार होती जाए और सरकार चुप्पी साधे रहे यह बात गले नहीं उतरती. इंसानियत को मरने से बचाना आज उसी सरकार का कर्तव्य और धर्म है जिसका नेतृत्व नरेंद्र मोदी कर रहे है. सरकार भी ऐसी कि जिसका कोई विपक्ष ही नहीं है. विपक्षियों के आए दिन के हंगामों से दुखी जनता ने विपक्ष को पूर्ण रूप से नकारते हुए नरेंद्र मोदी को इतना बहुमत दे दिया कि वह एक तानाशाह की तरह अपने फैसलों का सख्ती से पालन करवा सके. यह दुनिया लेन-देन के फार्मूले पर ही चलती है. जनता ने अपना फैसला नरेंद्र मोदी के पक्ष में इसलिए दिया कि जनता के पक्ष में फैसले लेते वक्त वह न हिचकिचाए कि न मालूम विपक्ष मानेगा या नहीं, सरकार बचेगी या नहीं. अब तो कोई विपक्ष भी नहीं है, खुले आम जनता के हित में फैसले लिए जा सकते हैं. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन फैसलों का इंतजार है, जिनमें अच्छे दिनों की योजनाएं छिपी हुई है.
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