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ये है घोष बाबू. स्कूल में राकेश घोष इसी नाम से फेमस है. ये सामान्य बच्चों से थोड़ा हटकर हैं. इसलिए ये ऋषिकेश स्थित ज्योति स्कूल (विशेष बच्चों के लिए) में स्कूलिंग के लिए जाते है. स्कूल में अधिकांश समय गुस्से में रहने वाले घोष बाबू बाहर से जितने सख्त दिखते है, अंदर से उतने ही अच्छे दिल के है. सामान्य स्कूल्स के नखरे और ईश्वर की विशेष कृपा इन पर रही. श्री भरत मंदिर स्कूल सोसाइटी ने इनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए ज्योति स्कूल की स्थापना की गई है. स्कूल प्रबंधन ने इन विशेष बच्चों के लिए जरूरत की चीजों का समुचित इंतजाम हर समय रहता है. मुझे भी एक लंबे समय तक इन बच्चों के बीच कम्प्यूटर टीचर के रूप में रहने का मौका मिला. यह बाहर से जैसे भी दिखते हो, पर दिल के बहुत ही साफ व अच्छे होते है. अब इन घोष बाबू की ही बात करूं, जब भी ये मेरे सामने आए तभी इनकी जबान पर सिर्फ एक ही बात होती है, ये मेरे सर है. सर मैं भी कम्पूटर सीखूंगा. लेकिन मेरी मजबूरी कहो या ईश्वर की लीला मैं चाह कर भी इनको कम्प्यूटर तो नहीं सीखा पाया. पर जितना यह कर सकते थे उतना मैंने इनको जरूर करवाया. इन्हीं बच्चों की दुआओं का असर है कि मैं आज आराम से जीवन व्यतीत करने की राह हूं. समाज से उपेक्षित व अपने मां-पिता के लाड़ले ये बच्चे ज्योति के उजाले में दुनिया की चकाचौंध से दूर अपनी अंधेरी होती जिंदगी में भविष्य की राह ढूंढ़ रहे है.
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