Harish Bhatt
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घर से निकला था मैं
यह सोचकर कि
एक घर हो मेरा भी.
बस यही सोच
मुझे करती रही अपनो से दूर
अब उम्र के इस पड़ाव पर
सोच रहा हूं
ईंट-गारे की दीवारों को
घर कहते है या
नाते-रिश्तों से मिले प्यार को
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