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उस वक्त मीडिया अच्छा था, जब मीडिया भ्रष्ट होती राजनीति की लंका फूंकने के लिए केजरी को केसरी बना रहा था और आज जब केजरी का विश्वास टूटा तो मीडिया की साजिश हो गई. वाह क्या बात है, कुमार साहब दूध के धुले है और उन पर आरोप लगाने वाली महिला दोषी है. कुमार की इज्जत, इज्जत है और महिला की इज्जत कबाड़ा. शब्दों के धनी कुमार इतना तो जानते ही होंगे कि जब धुंआ उठा है तो मतलब साफ है कि कहीं कुछ सुलगा ही होगा. पारदर्शिता का दावा करने वाली आप की हिमाकत तो देखिए महिला के आरोपों का सही जवाब देने के बजाय मीडिया को ही गिरियाने लगे. मीडिया को गिरियाने से पहले आप को सोचना चाहिए कि यह वही मीडिया है, जिसने आप को राजनीतिक फलक पर पहुंचा दिया, वरना सालों बीत जाते है, जन-जन तक अपनी आवाज पहुंचाने में. आज अगर मीडिया ने एक सवाल पूछ लिया तो भड़क गए. क्यों सीधे मुंह जवाब नहीं दिया जा सकता. हर सवाल पर कहना कि हमसे गलती हुई तो हमको जेल भेज दो, फांसी पर लटका दो, कहकर हंगामा करना आप की अपरिपक्वता को ही दर्शाता है. देश की राजनीति में परिवर्तन करने से पहले खुद को सुधार ले तो बेहतर होगा. वरना हर सवाल पर मीडिया की औकात बताने वालों को समझ लेना होगा कि कहीं मीडिया अपनी औकात पर आ गई तो न फिर आप बचेगी और न की आप के बड़बोले नेता, क्योंकि यह तो सभी जानते है जो जितनी तेजी से ऊपर जाता है, वह दुगुनी गति से नीचे आता है. अभी तो यह शुरूआत है आगे और लड़ाई है. आप पर मीडिया ने जनता का जो भरोसा करवाया है, वह बहुत ही मुश्किल से किसी को मिलता है. मौका मिला है, उसको बेहतर अंदाज में भुनाइए, ताकि आने वाली पीढिय़ां याद रखे कि कोई क्रांतिकारी पार्टी आई थी. ठीक है आरोप लगते रहते है, उनसे बरी भी हुआ जाता है, पर इसका ये मतलब नहीं कि सब दूध के धुले ही होगा. कभी-कभी काले होते चेहरे पर पाउडर पोतकर दूधिया भी बनाया जाता है. आप खुश किस्मत है कि अभी आप के चेहरे पर मीडियाई कैमरों की फ्लश लाइट पडऩी बंद नहीं हुई है. मीडिया का फ्यूज उड़े इससे पहले अपनी गलतियां सुधारते हुए आगे बढ़ जाइए, क्योंकि अभी मंजिल दूर है.
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