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जाने चले जाते हैं कहाँ, दुनिया से जानेवाले,
कैसे ढूंढे कोई उनको, नहीं कदमों के भी निशां
श्री वीरेंद्र पाल सिंह. भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी. श्री सिंह ने 1998 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद ऋषिकेश में गंगा किनारे अपना आशियाना बनाया. कभी कनाडा तो कभी ऋषिकेश मे जीवन व्यतीत कर रहे थे. अंकल जी को मुझ से बहुत उम्मीद थी. वह हमेशा कहा करते थे, बेटा तुम हिंदी में अच्छा काम कर रहे हो. जबकि वह जानते थे हिंदी के विकास में मेरा कोई योगदान नहीं है. बावजूद इसके वह कहते थे कि बेटा हिंदी अब किताबों से निकलकर इंटरनेट पर छाएगी. तुम इंटरनेट पर ही हिंदी का प्रचार-प्रसार करो. मैं भी उनसे बहुत प्रभावित था, वह मेरे प्रेरणास्रोत भी है. अंकल जी ने saralhindi.com और हिंदी से संबंधित कई वेबसाइट बनाई थी. उनके पास मुझे व हिंदी साहित्य को देने के लिए काफी कुछ था. शायद नियति को यह मंजूर नहीं था और अंकल जी 6 मई 2015 को हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया को छोड़कर अनंत की यात्रा पर चले गए. यह खबर सुनते ही मैं ठगा सा रहा गया. मेरे पास न तो इतनी योग्यता है और न ही इतने साधन की, कि मैं उनके सपनों को साकार कर सकूं. लेकिन अपने छुटपुट प्रयासों से ही उनकी उस उम्मीद को पूरा करने का प्रयास जरूर करता रहूंगा, जो उन्होंने मुझ से लगाई थी. एक कसक मेरे दिल में ही रह गई कि मैं चाहते हुए उनसे कुछ ज्यादा नहीं सीख पाया. बस अब तो उनकी याद ही मुझे आगे बढऩे के लिए प्रेरित करती रहेगी.
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