Harish Bhatt
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ऐ दोस्त
गैरों को तो समझा भी दूँ
अपने जख्मों का हिसाब
पर अपनों का क्या करू
जो लिए फिरते है हाथो में नमक
जब भी भूलने की करता हूँ कोशिश
तभी आ जाता है अपना कोई
और कहता है
अरे क्या हुआ, कैसे हुआ
इतना सुनते ही फिर
हरा हो जाता है जख्म
चुप रह नहीं सकता
वरना लग जाएगा
एक और इल्जाम कि
देखो हो गया न घमंड
एक तो जख्म दूसरा घमंड
कहा तक दूंगा हिसाब
इस हिसाब किताब के फेर में
वक़्त गुज़रता जा रहा
और हम यूँ ही चलते जा रहे.
हरीश भट्ट
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