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कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना, छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत न जाए रैना’ यह कहने या सुनने को सिर्फ एक हिन्दी फिल्म का बहुत ही दिलकश व प्रसिद्ध गीत है। इस गीत में जिन लोगों का जिक्र हुआ है, उन्हीं लोगों की वजह से आज हम अपने घर को घर नहीं बना रहे है। इन्हीं लोगों की वजह से हमारे अपने दूर होते जा रहे है। इनकी बातों में आकर हम बुजुर्गों की अनमोल शिक्षाप्रद बातें और अपने संस्कारों को भूलते जा रहे है। इन लोगों की बातों का ही असर है हमारी दिनचर्या बदलने के साथ-साथ ही हमारे पैर भी चादर से बाहर निकलते जा रहे है। हमने जीवन स्तर सामान्य से ऊपर उठाने के लिए रिश्वत लेनी शुरू कर दी। क्योंकि हमको अपना नहीं, लोगों का डर था, इसलिए हमने पिताजी के बनाए सालों पुराने घर को तुड वाकर उसको आधुनिकता की प्रतीक व ऐशो-आराम की हर वस्तु से परिपूर्ण करके लोगों को संतुष्ट करके उनका मुंह बंद कर दिया। अपने ऑफिस के बाहर चाय की ठेली पर पांच रुपए की चाय पीने में हमको शर्म आती है, इसलिए शहर के महंगे रेस्टोरेंट में जाकर महंगे दामों पर चाय पीनी शुरू कर दी। इन लोगों की दहशत का आलम है कि आज लाचार व बेबस प्रेमी-प्रेमिका आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे है, भले ही वह आर्थिक व सामाजिक स्तर पर सक्षम हो। कभी-कभी तो उनके घर वाले भी उनको वैवाहिक जीवन शुरू करने का आशीर्वाद ख़ुशी-ख़ुशी देने को तैयार हो जाते है, पर लोगों व समाज के डर की वजह से वह तो स्वयं घुट-घुट कर जीने को विवश हो जाते है, दूसरी ओर वह नवविवाहित युगल वैवाहिक सफर की शुरूआत करने से पहले ही टूट कर बिखर जाता है। उन लोगों का क्या कर सकते है, जिन्होंने माता सीता की पवित्रता पर ऐसी ऊंगली उठाई कि आज तक हमारी लाड़ली बेवजह बदनाम होती चली आ रही है, कोई इस बात पर सोचने को तैयार नहीं है, बस यूं ही जिए चले जा रहे है, और बस समय और नाम बदल जाते है। इन लोगों की वजह से ही बच्चों को अपने माता-पिता व बुजुर्गों की बातें नागवार लगती है, क्योंकि उनके दोस्त क्या कहेंगे बड़े श्रवण कुमार बनते हो, तुम्हारी अपनी भी तो कोई बात होनी चाहिए, अब तुम बड़े हो चुके हो, पर वह यह भूल जाते है, उसी अनुपात में उनके बड़े भी और बड़े हो गए होगे ढेर सारे अनुभव के साथ। अब इन लोगों का क्या कहना कि न किसी को जीने देते है और न किसी को चैन से मरने देते है। इनकी सच्चाई यह है कि आज धर्म खतरे में है, जनता को जागृत करने के लिए हर रोज टेलीविजन के माध्यम से हमारे घर में आने वाले कथावाचक हो या नेता, बहुत जाने-माने ऋषि-मुनि कोई भी बेदाग नहीं है। हम जहां तक सोच भी नहीं पाते, वहां यह लोग बेरोक-टोक आते-जाते है। हमारी मीडिया जब इन लोगों के बारे में ईमानदारी से आम जनता को जानकारी देना चाहती है, तो लोग मीडिया की ईमानदारी पर ही शक करना शुरू कर देते है, फिर मीडिया का क्या, वहां पर भी तो इंसान ही काम करते है और फिर वह भी इन लोगों की दहशत के चलते अपना रूख बदल लेते है और बात रह जाती है फिर वहीं ढाक के तीन पात। क्या करें समाज में रहना है तो इन लोगों की बातों पर ध्यान देना ही होगा, आखिर यह हमारे शुभचिंतक जो ठहरे, भले ही यह मुंह से राम-राम कहते हुए हमारी पीठ में खंजर मार दें। इन लोगों की वजह से हम अपना कोई भी काम ईमानदारी से नहीं कर पाते। अगर इन लोगों की बातों को छोड दिया जाए तो शायद हमसे बेहतर कोई नहीं हो सकता है।

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