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रोहित की आत्महत्या गरीबों पर भारी

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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नेताओं का हाल भी अजीब है कि एक शख्स जानते-समझते हुए आत्महत्या जैसा कदम उठा रहा है, तो उसको सिस्टम की खामी बता रहे है. वहीं दूसरी ओर सड़कों पर पड़े कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ टाइप के लोग ठंड के कारण मरते जा रहे है, उनका कुछ नहीं. अभी तक कोई किसी के दिल की बात नहीं जान सका है, तब ऐसे में कोई जीने-मरने के बारे में क्या सोचता है, इस बात का कैसे पता लगाया जा सकता है. कोई सिस्टम की खामी बता कर आत्मघाती कदम उठा लेता है तो कोई उसी सिस्टम में संघर्ष करता हुआ अपनी जिंदगी सुधार लेता है. तब ऐसे में हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित के आत्मघाती कदम के बारे में कोई कैसे जान सकता था. दूसरी ओर दिल्ली में सड़कों पर अलाव या रैन बसेरों की संख्याओं को बढ़ाकर ठंड से मरने वालों को बचाया जा सकता था. लेकिन उस ओर किसी का ध्यान नहीं है. असल में ठंड से बचाव के साधन उपलब्ध न करवाना ही सिस्टम की खामी है. रोहित वेमुला की खुदकुशी मामले की जांच कर रही हैदराबाद पुलिस ने जांच में पाया है कि रोहित वेमुला दलित नहीं था. अब उन नेताओं का क्या स्टैंड होगा, जो आनन-फानन में अपनी जनता को ठंड से मरता छोड़़ हैदराबाद कूच कर गए थे. इस बात को समझने की जरूरत है कि एक शिक्षित युवा की आत्महत्या का मामला ज्यादा महत्वपूर्ण है या ठंड से मरने वालों की संख्या. रोहित को आत्महत्या के लिए उकसाने वालों का जांच के बाद ही पता चलेगा कि इस बात में कितना दम है. पर दूसरी ओर ठंड से मरने वालों के दोषियों की पहचान तो जगजाहिर है, सीधे-सीधे ठंड के दिनों में गरीबों के लिए जगह-जगह अलाव या रैन-बसेरों समुचित व्यवस्था कराना स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी होती है, प्रशासन को चुस्त-दुरूस्त बनाना ही सरकार का काम होता है. सीधा सा मतलब है कि ठंड से मरने वालों के लिए सरकार ही दोषी है.

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