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माना की खेल में हार-जीत के कोई मायने नहीं होते, लेकिन क्या ओलंपिक में हारने का ठेका भारत का ही है. राजनीति में खेल के चलते खेलों में राजनीतिक कारगुजारियों के बीच ओलंपिक विक्ट्री स्टैंड पर भारतीय प्लेयर्स का ना होना अफसोसजनक बात है. खेलों में करोड़ों खर्च करने वाले खेल विभाग का क्या मतलब है. ऐसे में खेल मंत्रालय का नाम बदलकर क्रिकेट मंत्रालय कर दिया जाना ही बेहतर होगा. कम से कम दुनिया में इज्जत तो बनी रहेगी. खेल मंत्रालय और चयन समिति में गड़बड़ी के साथ ही प्लेयर्स की कमियां बड़े मुकाबलों में ही खुलकर सामने आ जाती है. छोटी-छोटी जीत पर इतराने वाले अकसर बड़े मैदान में झटका खा जाते हैं. घर के शेर घर से निकलते ही शिकारियों के जाल में फंस जाते हैं. दुनिया जीतने के इरादे और सोच को पक्षपातपूर्ण रवैये के साथ साकार नहीं किया जा सकता है. सिस्टम की खामियों का रोना रोने वालों को समझना होगा कि सिस्टम भी हमारा है और उसको चलाने भी हमारे अपने ही है. साथ ही समझना होगा जीतने वाले कोई आसमान से नहीं टपकते है. दिल को तसल्ली देने वाले कह सकते है कि गिरते है अकसर घुड़सवार ही मैदाने जंग में. ऐसे में अगर भारतीय प्लेयर्स गिरते ही रहेंगे तो आखिर उठेगें कब.
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