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बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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कौन सीएम, कौन मंत्री. माथापच्ची करने वाले कर ही रहे हैं. यहां खुद की हालत ऐसी हो रही है, जैसे बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना. वोट दिया है तो सरकार भी बनेगी ही. इसमें हमारा क्या रोल. रही बात काम-धंधे की तो अखबार में मिस्त्री के जैसे शब्दों की चिनाई करते ही रोटी का जुगाड़ होना है. इसमें भी शब्द अपने नहीं. तब ऐसे में न तो खबरनवीस ही हुआ और न ही उसकी पूंछ. शौकिया लेखन भी ऐसा नहीं, कि अपने लिखे को पाठक हाथों-हाथ ले. अपनी मित्र-मंडली से वाह-वाही के कुछ शब्द सुनकर ही संतुष्टि का अहसास हो जाता है. वल्र्ड फेम राइटर बनने का सपना तो ठीक वैसा ही है जैसे धरती-आसमान का एक होना. न आसमा धरती में समाएगा और न ही धरती आकाश में उड़ सकेगी. मतलब साफ है कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. दुनिया जैसी है, वैसी ही चलेगी. न कुछ बदला है और ही कुछ बदलेगा. बदलेगा भी कैसे जब सुनने को मिलता है कि एक आईआईटी वाला बैलेट पेपर पर वोटिंग चाहता है, और एक चाय वाला ईवीएम पर. फिर कहते है कि सारे जहां से अच्छा मेरा देश बदल रहा है. जब कुछ बदलने वाला नहीं है, तो मैं भी बदलकर क्या कर लूंगा. तो चलिए लिखना कम करते है और चलते है अपने मूल काम की ओर मतलब कम्प्यूटर स्क्रीन पर पन्नों को सजाने-संवारने का काम. कुछ थोड़ा पैसा हाथ आएगा तो टैक्स देने में आसानी होगी. क्योंकि सरकार बनते ही सरकार अपनी आय बढ़ाने के रास्ते तलाशते हुए टैक्स लगाना शुरू करेगी. फिर कहा जाता है कि सरकार बनाते ही कर्मचारी है और चलाते भी कर्मचारी ही है. आम आदमी तो धन्ना सेठ है, जितना निचोड़ा जाए, उतना ही कम. पांच साल में वोट देना उसका कर्तव्य है, देगा ही. लोकतांत्रिक देश में आम आदमी वोट भी नहीं देगा तो क्या करेगा. सोच का दही हुआ जा रहा है. इसलिए फिलहाल सोच पर स्टॉप लगाते हुए नमस्कार.

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